उत्तराखंड में नगर निकायों की संख्या बढ़कर 106 हो चुकी है, और इन निकायों को इस बार 16वें वित्त आयोग से 4500 करोड़ रुपये से अधिक की अनुदान राशि मिलने की उम्मीद है। निकाय प्रतिनिधियों और सरकार ने आयोग के समक्ष मजबूती से अपना पक्ष रखा है, जिसमें स्वच्छता, कूड़ा निस्तारण और वित्तीय संसाधनों की कमी जैसी समस्याओं को प्रमुखता से उठाया गया है।

15वें वित्त आयोग की तुलना में बढ़ी जरूरतें
15वें वित्त आयोग ने जब राज्य के नगर निकायों के लिए 4181 करोड़ रुपये की सिफारिश की थी, तब प्रदेश में मात्र 85 नगर निकाय थे। अब, निकायों की संख्या 106 हो जाने से वित्तीय आवश्यकताएं भी बढ़ गई हैं। खासकर उन नए निकायों के लिए, जिनके पास अपने आय के स्रोत नहीं हैं, और जो पूरी तरह से केंद्र और राज्य से मिलने वाली अनुदान पर निर्भर हैं।
स्वच्छता और कूड़ा निस्तारण की समस्या
निकायों के सामने सबसे बड़ी चुनौती कूड़ा निस्तारण की है। देहरादून सहित किसी भी बड़े नगर निकाय ने अब तक इस समस्या का पूर्ण समाधान नहीं निकाला है। कूड़े के ढेर और इसके निस्तारण पर बढ़ते खर्च ने निकायों के लिए स्थिति को और जटिल बना दिया है। स्थानीय प्रतिनिधियों ने इन मुद्दों को वित्त आयोग के समक्ष प्रमुखता से रखा है।
ग्रांट पर निर्भरता और सुधार की जरूरत
पुराने और नए दोनों ही प्रकार के निकाय आय के स्थायी साधनों के अभाव में केंद्र और राज्य सरकार से मिलने वाली ग्रांट पर निर्भर हैं। स्वच्छता और बुनियादी ढांचे के सुधार के लिए आत्मनिर्भरता जरूरी है, लेकिन इसके लिए योजनाबद्ध प्रयासों की आवश्यकता होगी।
16वें वित्त आयोग से उम्मीदें
16वें वित्त आयोग से मिलने वाली राशि इन निकायों को अपनी चुनौतियों से निपटने में मदद कर सकती है। हालांकि, कितनी ग्रांट मिलेगी, यह स्पष्ट नहीं है। लेकिन उम्मीद है कि इस बार की अनुदान राशि निकायों की संख्या और उनकी बढ़ती आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तय की जाएगी।
निष्कर्ष
बढ़ती संख्या और बढ़ती जिम्मेदारियों के बीच, उत्तराखंड के नगर निकायों को स्वच्छता, कूड़ा प्रबंधन और आय के स्रोत विकसित करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। 16वें वित्त आयोग से मिलने वाली राशि इन प्रयासों में सहायक हो सकती है, लेकिन इसके साथ ही स्थायी समाधान और दीर्घकालिक योजनाओं की आवश्यकता बनी रहेगी।